Sep 30, 2015

इनसे बचे - अहम,ज्यादा लगाव और वहम ( Ego, Over Attachment and Doubts )



जिंदगी बहुत छोटी छोटी चीजों से प्रभावित होती है और अनजाने में ही हम न जाने कितनी उलझनों को पाल लेते है।  तीन बाते हमें बहुत ज्यादा प्रभावित करती है , अहम , जरुरत से ज्यादा लगाव और वहम।  ये तीन बातें हर कदम पर हमारे व्यव्हार को निर्देशित करती रहती है और हम इनसे निरंतर दुःख अथवा सुख को अनुभव करते है।  यहाँ सुख का प्रतिशत नगण्य रहता है और दुःख इंसान पर हावी हो जाता है। 

आपने देखा होगा कि :

एक पिता इसलिए दुखी है क्यों की उसके बच्चे उसे पूछ कर कार्य नहीं करते। सोसायटी में सचिव हर वक़्त तनाव में रहता है, उसे डर है कहीं सदस्य उसके नियमों  को अवहेलना न कर बैठे। ट्रस्टी अथवा न्यासी को डर है कहीं ट्रस्ट की समितियों में उसका पद कोई और न ले ले। भागीदार को शंका है कि उसका भागीदार  व्यसाय में कोई प्रतियोगी के साथ न मिल जाय। राजनेता को डर है कही उसकी सत्ता छिन न जाये। पत्नी दुखी है क्यों कि उसका पति उसकी हर बात नहीं मानता। पति दुखी है क्यों कि पत्नी बहुत सवाल करती है। और भी कई उदाहरण हम अपने आस पास देख सकते है और इन सभी का सही विश्लेषण करे तो समझ में आएगा कि अहम , वहम या जरुरत से ज्यादा लगाव हमें सचमुच दुखी कर देता है। हम हर वस्तु को अपना मान बैठते है, उस पर अपना स्वामित्व जताने लगते है और इस प्रक्रिया में जब अहम पर चोट लगती है तो मानने को बिलकुल तैयार नहीं होते। सच्चाई तो यह हे कि जब अच्छी बात हो रही होती है परन्तु हमें पूछ कर नहीं की गयी तो हम उसके असफल होने की कामना करने लग जाते है। न केवल कामना बल्कि उसे असफल करने के लिए अपने सारे साधन भी काम पर लगा देते है। ये सब अहम के कारण होता है। लगाव की अधिकता से होता है या फिर कुशंकाओं के कारण होता है। जब हम सरलता से जीना छोड़ देते हे तो अहम वहाँ अपना घर बनाने के लिए तैयार रहता है। जिसे अहम होता है वो शंकालु भी ज्यादा होता है। ऐसे व्यक्ति भले किसी और से लगाव रखे या नहीं रखे परन्तु अपने अहम से सर्वोच्च लगाव रखते है और सिर्फ अपने आप को सही मानना इनके जीवन का आदर्श होता है। 

Sep 14, 2015

Nothing is Free

Everything we seek, has a price. You like or dislike, price is constantly tagged. You pay it willingly or unwillingly it is unavoidable. The price could be high or low, it has to be paid in different form,but we have to pay. So how to go about? Acceptance is the only answer. One has to prepare for  it and change his plans so.

Our life is full of constant challenges and we have to be certain about our actions so. Wishing to have something ? Think and ask yourself. Can you afford it ? If yes, is it worth? Such analysis is very useful and always wise to carry out. Many times we wish something to happen but feel, society or government will pay the price and if it doesn't happen we start blaming to whole system and complain all the time and it becomes a habit which eventually leads to constant sufferings. 

Mind well nothing is free. If something free, then be cautious, there would be big price, just wait, time is preparing to teach you another lesson. I personally studied about super returns in corporates and many instances of people too. They all came to normalcy soon. The free and even easy both don't sustain for longer time. 

There would be more and more struggles if you don't pay at all. If you avoid paying the right price and create shortcuts it would make you problem more complex and end up screwing it more and more at your cost only. I don't say seeking or wishing something is wrong, expecting something completely free should be avoided. For instance shedding ego or having ego both makes you pay the price. In both cases one has to adjust or compromise somewhere. Every field, be it career, spiritual, personal improvement, sports or whatever, all ask for price, efforts, money or other resources. In a nutshell we have to be ready for a price and balance it with justifying our capacity to afford and having right worth both. That's what life suggests us so set mind to pay the right price.

प्रयास (Efforts)

जब सब कुछ रुका हुआ हो तुम पहल करना निसंकोच, प्रयास करके खुद को सफल करना। ये मोड़ जिंदगी में तुम्हें स्थापित करेंगे और, संभव है कि तुम देव तु...